"मैं तुम्हें शांति का प्रस्ताव देता हूँ ।
मैं तुम्हें प्रेम का प्रस्ताव देता हूँ ।"
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शांति और प्रेम का प्रस्ताव देने वाले महात्मा गांधी विश्व के महा जननायक हैं । उन्होंने केवल भारतीय स्वतंत्रता के लिए ही काम नहीं किया बल्कि संपूर्ण मानवजाति के कल्याण में अपना योगदान दिया है । वे केवल भारत के ही नहीं बल्कि अहिंसा और भाईचारे का अमर संदेश देने वाले महान आदर्श हैं । उनका जीवन और दर्शन विश्व धरोहर है । महात्मा गांधी विश्व पटल पर महज़ एक नाम ही नहीं बल्कि शांति और अहिंसा के प्रमुख प्रतीक हैं । गांधीजी राजनीतिज्ञ, दार्शनिक, सुधारक, आचारशास्त्री, शिक्षाशास्त्री और क्रांतिकारी हैं । इससे परे जाकर वे विश्व मानवता के महाव्यक्तित्व हैं । उनके बारे में प्रख्यात वैज्ञानिक आईंस्टाईन ने कहा था कि "हज़ार साल बाद आने वाली नस्लें इस बात पर मुश्किल से विश्वास करेंगी, कि हाड़- मांस से बना ऐसा कोई इंसान पृथ्वी पर कभी आया था ।" जीवन, कार्य और दर्शन के आधार पर पारलौकिक लगने वाले गांधीजी को विश्व में अपनत्व एवं आदर-सम्मान की भावना से बापू और महात्मा के रूप में जाना-समझा जाता है ।
गांधीजी का व्यक्तित्व समूची मानव जाति के लिए आदर्श है । उन्होंने विश्व को सत्य, अहिंसा, संयम और शांति का महान संदेश दिया है । महात्मा गांधी के पूर्व भी शांति और अहिंसा की अवधारणा फलित थी किंतु उन्होंने जिस प्रकार शांति, सत्याग्रह व अहिंसा के माध्यम से अँग्रेज़ों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया, उसका ऐसा कोई उदाहरण विश्व इतिहास में नहीं दिखाई देता । गांधीजी ने सत्ताईस वर्षों के अल्पकाल में ही भारत को सदियों की दासता के अँधेरे से निकालकर आज़ादी के उजाले में पहुँचा दिया । गांधीजी का यह योगदान सिर्फ़ भारत की सीमाओं तक सीमित नहीं है । इसका प्रभाव संपूर्ण मानव जाति पर पड़ा है और गांधी की स्वीकार्यता वैश्विक हो गई है ।
गांधीजी ने अपने संपूर्ण जीवन को सत्य या सच्चाई की व्यापक खोज में समर्पित कर दिया था । उन्होंने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए खुद की ग़लतियों को सुधारते हुए उससे सीखने की कोशिश की थी । इसलिए उन्होंने अपनी आत्मकथा को 'सत्य के प्रयोग' नाम दिया था । गांधीजी ने सत्य की पवित्रता को खुद भी समझा था और उसे जन-जन तक भी पहुँचाया था । सत्य के बारे में अपने विचार संक्षेप में बताते हुए गांधीजी ने "सत्य ही भगवान है" यह संदेश दिया था और इसे अपने जीवन में उतारा भी था ।
गांधीजी मनुष्यता के ऐसे शिखर हैं, जहाँ कोई नहीं पहुँच सकता । उन्होंने विश्व मानवता की रक्षा के लिए 'अहिंसा' का बेशक़ीमती दर्शन दिया है । वास्तव में गांधीजी अहिंसा के प्रतीक हैं । उन्होंने अहिंसा सिद्धांत का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया है । गांधीजी ने अहिंसा को सत्य का दूसरा पहलू माना है । उनकी अहिंसा में केवल द्वेष का अभाव ही नहीं, प्रेम की संप्राप्ति भी है । यह प्रेम स्वार्थ, मोह, आसक्ति आदि से भिन्न है । इस अहिंसा में वैर-त्याग, चराचर प्रेम और पूर्ण निष्काम भाव का समन्वय दिखाई देता है । इस समन्वय का पहला तत्व जैन, बौद्ध अहिंसा का है तो दूसरा वैष्णव भावना का प्रसाद है और तीसरा तो स्पष्टत: गीता का प्रभाव है । गांधीजी ने अहिंसा की प्राप्ति के लिए आत्मशुद्धि को आवश्यक माना है । आत्मशुद्धि के लिए उन्होंने अन्य संतों की भाँति अहं के त्याग को भी अनिवार्य माना है । गांधीजी का अहिंसा का यह मंत्र उनके जीवन काल में ही नहीं वरन् आज भी वैश्विक है । इसीलिए तो संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा के अनुसार पूरे विश्व में गांधी जयंती 'विश्व अहिंसा दिवस' के रूप में मनाई जा रही है ।
गांधीजी के जीवन और दर्शन में त्याग और तप का प्राधान्य है । उन्होंने शिव और सत्य पर बल दिया है । उनका धार्मिक दर्शन मानवीयता पर टिका हुआ है । गांधी का धर्म वह धर्म नहीं है जिससे प्रत्येक धर्म की धार्मिकता में वृद्धि होती है । अच्छा गांधी मार्गी अच्छा हिंदू भी है और अच्छा मुसलमान भी है । ईसाई धर्म प्रचारकों को लक्ष्य करके एक बार गांधी जी ने कहा था कि "तुम हमें नया धर्म सिखाने को इतने आतुर क्यों हो ? हमें अच्छा हिंदू बनाओ, अच्छे नर-नारी बनाओ, यही यथेष्ट है । नाम के परिवर्तन से हृदय तो परिवर्तित नहीं होगा ।" अर्थात् गांधीजी ने धर्म के बाह्याडंबरों का विरोध किया है । उन्होंने हमेशा मानवता की वकालत की है और यह स्पष्ट किया है कि मनुष्यता ही सबसे बड़ा धर्म है । उनसे जब पूछा गया कि क्या आप हिंदू हैं, तो उन्होंने कहा, "हाँ मैं हूँ । मैं एक ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध और यहूदी भी हूँ।"
गांधीजी ने धार्मिक एवं जातीय एकता, अस्पृश्यता का अंत और स्वतंत्रता प्राप्ति तथा नागरिक अधिकारों के लिए बहुत से आंदोलन चलाए हैं । ग्राम स्वराज और बुनियादी शिक्षा की संकल्पना उन्होंने विश्व को समर्पित की है । गांधीजी ने भारत आने पर पश्चिमी शैली के वस्त्रों का त्याग किया । उन्होंने भारत के सबसे ग़रीब व्यक्ति द्वारा जो वस्त्र पहने जाते हैं उसे स्वीकार किया तथा घर में बने हुए खादी के कपड़े पहनने की वकालत की । गांधीजी ने आत्म-निर्भरता वाले आवासीय समुदाय में अपना जीवन गुज़ारा और परंपरागत पोशाक धोती और सूत से बनी शॉल पहनी, जिसे वे स्वयं चरखे पर बनाते थे । उन्होंने सादा शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि तथा सामाजिक प्रतिकार के लिए लंबे-लंबे उपवास भी किए । सादगी भरा जीवन जीते हुए गांधीजी सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्तित्व बने ।
गांधीजी के व्यक्तित्व और दर्शन से विश्व के अनेक महान लोग प्रेरित हुए । अमरिका के नागरिक अधिकार आंदोलन के नेताओं में मार्टिन लूथर किंग और जेम्स लाव्सन गांधीजी की अहिंसा के प्रति काफ़ी आकर्षित हुए थे । दक्षिण अफ्रिका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला गांधीजी से प्रेरित थे । उल्लेखनीय भौतिक विज्ञानी अलबर्ट आईंस्टाईन गांधीजी के साथ पत्राचार करते थे । इसके साथ ही साथ ब्रिटिश संगीतकार जॉन लेनन ने अहिंसा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए गांधीजी का हवाला दिया था । गांधीजी का जीवन तथा दर्शन कई लोगों को प्रेरित करता है । इसीलिए तो भारत के साथ ही साथ विभिन्न देशों ने गांधजी के जीवन और दर्शन से जुड़े डाक टिकट निकाले हैं ।
आज अहिंसा और शांति शब्द सुनते ही सारा विश्व बापू को याद करता है । हमारे देश के प्रधानमंत्री डॉ. सिंह नौवें विश्व हिंदी सम्मेलन को दिए संदेश में कहते हैं कि "राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अहिंसा एवं सत्याग्रह के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया था । समय के साथ विश्वभर में यह महसूस किया गया है कि ये सिद्धांत मानव समाज में शांति, प्रगति तथा विकास के लिए हमेशा प्रासंगिक बने रहेंगे ।" तात्पर्य यह कि आज वैश्विक उन्नति के लिए महात्मा गांधीजी का जीवन और दर्शन आज भी प्रासंगिक है ।
गांधीजी का व्यक्तित्व वास्तव में आज के लिए ही प्रासंगिक नहीं है बल्कि हर युग की श्रेष्ठ मानवता और उसकी श्रेष्ठ उपलब्धियों के संदर्भ में भी प्रासंगिक है । सत्य, अहिंसा, प्रेम, भाईचारा, असंचय, सहकारिता आदि उदात्त एवं शाश्वत गुण गाँधीवाद के साथ जुड़े हुए हैं। गांधीजी ने हाथ से काम करने, सादा जीवन बिताने, ट्रस्टी-शिप जैसे सत्यों एवं सिद्धांतों का प्रतिपादन किया था । उसी के आधार पर ही विश्व की प्रगति और विकास संभव है । आज विश्व मानव के सामने किसी भी क्षण शांति भंग होने और युद्ध छिड़ने का जो ख़तरा मँडरा रहा है उनसे केवल गांधी विचार ही रक्षा कर सकते हैं । आज जो बात-बात में व्यक्तियों, समाजों और देशों में ठन जाया करती है उस तरह की स्थितियों में भी गांधी विचार छुटकारा दिला सकते हैं । गांधी विचार के आधार पर ही मानवता का कल्याण और उसके भविष्य की सुरक्षा संभव है ।
निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि विगत शताब्दी में और आज भी गांधीजी का जीवन दर्शन बहुचर्चित है । यह व्यक्तित्व केवल भारत की सीमाओं तक सीमित नहीं है बल्कि समूचे विश्व में फैला हुआ है । विश्व में प्रेम, शांति बनाए रखने की दृष्टि से आज यह व्यक्तित्व और उसका दर्शन प्रासंगिक है । मनुष्यता की रक्षा के लिए आज प्रत्येक राष्ट्र के लिए गांधी दर्शन की आवश्यकता है । युवा पीढ़ी को सही दिशा दने की दृष्टि से बापू का व्यक्तित्व एक असाधारण आदर्श है । ऐसे विश्व चर्चित महाव्यक्तित्व को जयंती के अवसर पर शतशः नमन...
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संदर्भ संकेत
1. समकालीन साहित्य समाचार- अंक 9, सितंबर 2012
2. गांधीवाद की रूपरेखा- रामनाथ सुमन
3. सत्य के प्रयोग - महात्मा गांधी
4. हिंदी आलोचना की पारिभाषिक शब्दावली - डॉ. अमरनाथ
5. दैनिक भास्कर औरंगाबाद- 23 सितंबर 2012
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