बहुत दौड़धूप कर लक्ष्मण घर आया । थके-माँदे की तरह दीवार का सहारा लेकर बैठ गया । उमा ने नज़र उठाकर उसकी ओर देखा । क्या हुआ है यह उसने ताड़ लिया। फिर भी उसने पूछा,
'क्या हुआ ?'
लक्ष्मण ने परेशानी से कह दिया ।
'क्या होगा । पैसे देकर भी कोई एक पूला कड़बी देने के लिए तैयार नहीं है।'
व्याकुलता और डर से उमा ने पूछा,
'अब क्या होगा ?'
'ले जाता हूँ मवेशियों के बाज़ार में । जो भाव मिलता है उसमें ही बेच देता हूँ ।'
उमा के होश उड़ गए । अपनी पघे के बैल मिट्टी के मोल कैसे बेचे ?...अब बैल बेचे तो बाद में कैसे ख़रीदे ?...इधर कुछ वर्षों से अपनी आय के भीतर जीविका चलाना बहुत ही कठिन हो गया है । ऐसी दशा में दुबारा बैल ख़रीदना कैसे संभव हो सकता है ? और बैल नहीं ख़रीद सके तो हमारी खेती की मशक्कत का क्या होगा ?...हालात भी ऐसे हैं कि अकाल के कारण बाज़ार में मवेशियों को कसाई के सिवा कोई दूसरा ख़रीदनेवाला भी नहीं है। अपनी पघे के बैल कसाई को कैसे बेचे ?...
उमा मन ही मन ऐसा सोच रही थी कि उसे कुछ याद आया । उसने जल्दबाज़ी में उठते हुए कहा,
'आ जी, मैं भूल ही गई ।'
लक्ष्मण ने पूछा,
'क्या ?
उमा ने कोने में रखा हुआ एक अमरसी, छपा हुआ काग़ज़ हाथ में लिया । वह काग़ज़ लक्ष्मण को देते हुए उसने कहा।
'कुछ समय पहले शक्कर कारख़ाने से एक आदमी आया था । यह काग़ज़ देकर गया है ।'
'लक्ष्मण ने उस छपे काग़ज़ को सरसरी नज़र से देख लिया । अकाल की परिस्थिति को देखते हुए उस परिवेश के शक्कर कारख़ाने की ओर से मवेशियों के लिए छावनी शुरू होने वाली थी। कारख़ाने के मैदान में शुरू हो रही मवेशियों की इस छावनी का उद्घाटन पालक मंत्री के करकमलों द्वारा होनेवाला था । अकाल से पीड़ित किसानों को उनके बैल, दुधारू और बेकार जानवरों को छावनी में छोड़ने तथा इस उद्घाटन समारोह में उपस्थित रहने का आवाहन इस पत्रिका में किया गया था ।
लक्ष्मण काग़ज़ को सरसरी तौर पर देख ही रहा था कि ऐसे में ही उमा ने पूछा,
'यह काग़ज़ कैसा है जी ?'
'कल हमारे शक्कर कारख़ाने पर मवेशियों की छावनी का उद्घाटन होनेवाला है । ...अकाल के कारण जिन किसानों-खेतिहर मज़दूरों की बैल-मवेशी सँभालने की हैसियत नहीं है उनके बैल-मवेशी पावस तक शक्कर कारख़ाना मुफ्त में सँभालनेवाला है ।'
बहुत ही मुसीबत में फँसने की स्थिति में अचानक रास्ता सूझने पर जैसा महसूस होता है वैसा उमा को लगा । ख़ुश होकर उसने कहा,
'आ जी फिर तो अच्छा हुआ । हमारे बैल उस छावनी या क्या कहते हैं उसे ? उसमें छोड़ दो।'
'छावनी में बैल छोड़कर अपनी खेती की मेहनत-मशक्कत का क्या करोगी ? पावस आने पर अपना खेत कैसे बोएँगे ?'
पति कहता है वह भी बराबर है । मवेशियों की छावनी में बैल छोडनेपर खेती की मशक्कत नहीं कर सकेंगे और खेती की मेहनत-मशक्कत न होने पर पावस में बुआई नहीं होगी । उमा ने नाख़ुश होकर पूछा,
'ऐसी छावनी किसानों के किस काम की ? छावनियों में बैलों को जिलाना चाहिए । लेकिन बैलों को खेती से अलग कर पाला-पोसा तो किसानों को मरने से बचाने में ये किस काम की ?'
लक्ष्मण मन ही मन ऐसा सोच रहा था कि इतने में अप्पाराव शेलार आया । अप्पाराव आँगन में दिखते ही लक्ष्मण ने कहा,
'आओ तात्या।'
लक्ष्मण के नज़दीक बैठते हुए अप्पाराव ने कहा,
'तुझे कारख़ाने का काग़ज़ मिला क्या ?'
'हाँ...मिल गया है ।'
'तो छावनी में बैल छोड़ने के बारे में क्या सोच रखा है ?'
'छावनी में बैल छोड़ने के लिए मेरा मन ही तैयार नहीं हो रहा है ।'
'क्यों ?'
छावनी में बैलों को जिलाने की दृष्टि से छोड़ना ठीक लगता है; किंतु खेती की मेहनत-मशक्कत की दृष्टि से साथ ही बुआई की दृष्टि से भी यह असुविधाजनक लगता है । यह लक्ष्मण ने अप्पाराव को विस्तार से बताया। यह सुनने पर अप्पाराव ने कहा,
'तुम जो कहते हो वह बिल्कुल सच है; किंतु तुझे-मुझे आज या कल रोज़गार हमी के काम पर जाना पड़ेगा की नहीं ?'
'जाना ही पड़ेगा ।'
'तू रोज़गार हमी के काम पर जाने से बैलों को क्या काम लगाएगा ?'
लक्ष्मण सोचने लगा । अप्पाराव का सवाल एकदम उचित था । वह रोज़गार हमी के काम पर जाने के बाद बैलों को पगह से बाँधकर रखने के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं था । अपना कहना लक्ष्मण के गले उतर रहा है, यह देखकर उन्होंने दूसरा सवाल किया । उन्होंने कहा, 'उनके घास और पानी की व्यवस्था कहाँ से और कैसी करेगा ?'
अप्पाराव का यह सवाल भी बिल्कुल सच और सही था । यदि मैं रोज़गार हमी के काम पर न जाने के बारे में सोचूँ तो कैसे जिए ? यह सवाल था । बैलों को पगह से बाँधकर पाले-पोसे तो यह भी संभव नहीं था । रोज़गार हमी का काम कर हम पति-पत्नी कितना कमाएँगे, घर में कितना खाएँगे और पगहे के बैलों को कितना खिलाएँगे ? लक्ष्मण को गुत्थी में फँसने जैसा लगा । उसने अप्पाराव से कहा,
'हाँ, पर पगहे के बैल बेचकर अपना कैसे चलेगा । बाद में हम बैल कैसे ख़रीद सकेंगे ?'
'इसीलिए तो मैं छावनी में बैल छोड़ने के लिए कह रहा हूँ ।'
'पर अपनी खेती के लिए उसका फ़ायदा क्या ?'
'फ़ायदे और उपयोग के बारे में बाद में सोच, अपनी पगह के बैल तो सुरक्षित रहेंगे ।'
उमा ने भी अप्पाराव की बात का समर्थन करते हुए कहा कि 'तात्या कह रहे हैं वह बिल्कुल सही है। अब इस हालात में मवेशियों की छावनी में बैल छोड़ना ही फ़ायदे में रहेगा ।'
लक्ष्मण ने भी यही उचित समझा । कल अपनी पगह के बैलों को ले जाकर शक्कर कारख़ाने की ओर से शुरू होनेवाली मवेशियों की छावनी में छोड़ देने का निश्चय उसने किया । लक्ष्मण और अप्पा अपने बैल लेकर शक्कर कारख़ाने पर आने के बाद उन्होंने देखा कि उद्घाटन का कार्यक्रम शुरू होने में बहुत वक्त था । मवेशियों के बहुत बड़े बाज़ार जैसा माहौल बन गया था । कारख़ाने के परिवेश में बैल, मवेशी खड़े थे । इन बैल, मवेशियों में प्रमुखता से ख़ाली-निरर्थक जानवर ही अधिक थे । दुधारू जानवर तथा काम के बैल बहुत ही कम थे । कारख़ाने के परिवेश में एक ओर मवेशियों की छावनी के लिए जगह तैयार की थी । छावनी के चहुओर से तारों का घेरा बनाया था । इस घेरे की बाज़ू से बाँस आदि की पट्टियों के पल्ले से शेडस् बनाए थे । इन शेडों में खूँट भी नहीं थे और मवेशियों को घास के लिए नाँद भी नहीं बनाई थी । छावनी की एक ओर पानी का हौज़ रखा था । यह हौज़ पानी से लबालब भरा हुआ था । मवेशियों की छावनी का अभी उद्घाटन नहीं हुआ था इसलिए छावनी का गेट बंद था । मवेशियों के लिए बनी छावनी देखने के बाद लक्ष्मण ने अप्पाराव से पूछा,
'तात्या, यह मवेशियों की छावनी है या मवेशीख़ाना ?'
अप्पाराव ने पूछा,
'क्या हुआ ?'
'इस छावनी में मवेशियों को बाँधने के लिए खूँट भी नहीं है और घास के लिए नाँद भी नहीं बनाई है। इससे तो मवेशीख़ाना बेहतर होता है ।'
अप्पा को भी यह बात जँची । सकुचाते हुए उन्होंने कहा,
'तुम जो कह रहे हो वह बिल्कुल सही है । पर अब दूसरा कोई इलाज ?'
छावनी में मवेशियों को कब छोड़ा जाएगा, उनके घास-पानी की व्यवस्था कब होगी । इस बारे में लक्ष्मण ने पूछताछ करने पर उसने जान लिया कि पहले पालक मंत्री के करकमलों से मवेशियों की छावनी का उद्घाटन होगा और बाद में मवेशियों की लिखा-पड़ी कर उन्हें छावनी में छोड़ा जाएगा, उसके बाद ही उनके घास-पानी की व्यवस्था की जाएगी ।
उद्घाटन कार्यक्रम की तैयारियाँ हो चुकी थी लेकिन कार्यक्रम शुरू होने में थोड़ा समय लगनेवाला था ।
कार्यक्रम के लिए आलीशान मंच बनाया गया था । मंच की साज-सज्जा में कोई कसर बाक़ी नहीं रखी थी । मंच के सामने ठाठदार मंडप बनाया गया था । कारख़ाने के अधिकारी भागदौड़ कर रहे थे । गदराए अंग के, चिकनाहट भरे चेहरे वाले और सफ़ेद कपड़े पहने हुए शक्कर कारख़ाने के चेअरमन संचालकों के दलबल को साथ लेकर व्यवस्था की समीक्षा कर रहे थे । छावनी के प्रवेश द्वार को एक गाय बाँध रखी थी । छावनी के गेट को बाँधी हुई लाल रंग की फीत पालक मंत्री जी के करकमलों द्वारा काटकर वहाँ बँधी गाय को वे छावनी में छोड़कर उद्घाटन करनेवाले थे । मवेशियों की छावनी में छोड़ने के लिए लाई गायों में से इस गाय को चुन लिया था ।
लक्ष्मण ने अनिमेष नज़रों से सबकुछ देख लिया । देखते-देखते उसने अप्पाराव से पूछा,
'तात्या, मवेशियों की छावनी का उद्घाटन या क्या कहते हैं उसे वह करने के लिए इतना सबकुछ करना ही पड़ता है क्या ?'
लक्ष्मण क्या कहना चाहता है यह अप्पाराव की समझ में नहीं आया । उन्होंने पूछा,
'क्या कह रहा है तू !'
'इस कार्यक्रम को इतना बड़ा मंच...लाऊडस्पीकर...पुष्प मालाएँ...फोटों... यह सब नहीं किया होता तो नहीं चलता ?'
'उद्घाटन के लिए इतना बड़ा नेता आ रहा है, उसके सम्मान में यह सब करना पड़ता है ।'
'किसान नेस्तनाबूद होने का समय आया है । ऐसे हालात में केवल उद्घाटन के कार्यक्रम पर इतना ख़र्च बेतुका लगता है ।'
लक्ष्मण और अप्पाराव ऐसा बोल रहे थे इतने में कारख़ाने की ओर आनेवाले रास्ते से गाड़ियों का कबीला दिखाई देने लगा। 'आए, नेताजी आए' लोगों में शोरगुल मच गया । कारख़ाने के परिवेश में उत्साह और ख़ुशी की लहर दौड़ गई ।
मंत्रीजी कार्यक्रम स्थल पर आते ही कारख़ाने के चेअरमन उनकी गाड़ी की और दौड़े । उन्होंने उनका स्वागत किया । पहले फीत काटकर और बाँधी हुई गाय छावनी में छोड़कर उद्घाटन होगा और उसके बाद माल्यार्पण और भाषणों का कार्यक्रम शुरू होगा और ऐसा हुआ तो भाषण न सुनते हुए छावनी में बैल छोड़कर दोपहर के भोजन तक घर जा सकूँगा ऐसा लक्ष्मण को लगा । किंतु इतने में चेअरमन के पीछे-पीछे मंत्री महोदय मंच की ओर गए । पहले मंच का कार्यक्रम और उसके बाद छावनी का प्रत्यक्ष उद्घाटन होगा यह लक्ष्मण ने पूरी तरह से समझ लिया । उसने आजिज़ होकर कहा,
'साला, दोपहर तक छुटकारा नहीं होगा ऐसा लग रहा है ।'
लक्ष्मण क्या कहना चाहता है यह अप्पा ने समझ लिया । उन्होंने कहा, 'उनका भी तो बराबर ही है लक्ष्मण । छावनी का उद्घाटन पहले किया होता तो उनका भाषण सुनने के लिए यहाँ कौन रुकता'
बैलों की डोर हाथ में पकड़कर लक्ष्मण भौचक्का होकर बैठ गया ।
उद्घाटन कार्यक्रम को रीति के अनुसार शुरुआत हुई । प्रास्ताविक हुआ । परिचय हुआ। मंत्री महोदय और उनके साथ आए ज़िले के प्रमुख नेताओं का फूल-माला देकर स्वागत किया गया।
मंत्री महोदय उद्घाटनपर विचार व्यक्त करने के लिए खड़े हुए । सबसे पहले उन्होंने मंडप में बैठे श्रोता और कारख़ाने के परिवेश में अपने-अपने मवेशियों की डोर हाथों में थामकर बैठे हुए अकाल से पीड़ित किसान और खेतिहर मज़दूरों पर नज़र डाली और धीमे लेकिन दमदार स्वर में उन्होंने भाषण शुरू किया । पहले उन्होंने अकाल की स्थिति का जायज़ा लिया । इस अकाल की स्थिति से निपटने के लिए सरकार कैसे मुक़ाबला कर रही है, यह उन्होंने विस्तार से बताया । इसके पश्चात् शक्कर कारख़ाने के कार्यक्षेत्र में आनेवाले किसानों, खेतिहर मज़दूरों के मवेशियों को जिलाने के लिए मवेशियों की छावनी शुरू करनेवाले कारख़ाने के चेअरमन के लिए जी भरकर तारीफ़ के पुल बाँधे और बधाई देकर अपना भाषण पूरा किया ।
दोपहर हो गई थी । मंत्री महोदय का भाषण कब ख़त्म होगा और सुबह से भूखे मवेशी छावनी में छोड़कर खुद को कुछ खाने के लिए कब मिलेगा ? ऐसा अकाल पीड़ित किसानों-खेतिहर मज़दूरों को लग रहा था। इसलिए भाषण ख़त्म होते ही उन्हें बहुत अच्छा लगा ।
छावनी का उद्घाटन करने के लिए चेअरमन और मंत्री महोदय छावनी के गेट की ओर निकले । उनके पीछे-पीछे शक्कर कारख़ाने के संचालक और कार्यकर्ता दौड़े ।
मंत्री महोदय जी ने पहले छावनी के गेट को लगाई लाल रंग की फीत काट दी । फीत काटने पर तालियों की कड़कड़ाहट हुई । फ़ोटोग्राफ़र ने हड़बड़ी से फोटों खींचे । उसके बाद अकाल पीड़ित खेतिहर मज़दूर की गाय छावनी में छोड़ने का कार्यक्रम शुरू हुआ ।
नियोजित कार्यक्रम के अनुसार मंत्री महोदय गाय का दाहिना पैर पानी से धोनेवाले थे । उसके पैर तथा ललाट को हल्दी और कुंकुम लगाकर पूजा करनेवाले थे । उसके बाद उसके गले में फूलों की माला पहनाकर उसे छावनी में छोड़नेवाले थे ।
मंत्री जी ने गाय के पैर पर पानी डाला । लेकिन वह गाय इतनी प्यासी थी कि पैर पर पानी पड़ते ही उसे चाटने लगी । पानी चाटने की उसकी गति इतनी थी कि मंत्री महोदय उसके पैर को कुंकुम नहीं लगा सके । आख़िर उसकी ललाट पर कुंकुम-हल्दी लगाकर मंत्री जी को संतुष्टि करनी पड़ी।
अब केवल उस गाय के गले में फूलों की माला डालकर उसे छावनी में छोड़ने का कार्यक्रम शेष रह गया था । मंत्री महोदय जी ने गले में माला डालने के लिए माला हाथ में ले ली । वे माला उसके गले में पहना ही रहे थे कि भूखी गाय ने खाने की उम्मीद से वह माला खींच ली । यह घटना ऐसे घटित हुई कि मंत्री महोदय हक्का-बक्का हो गए । अब क्या करें ? इस प्रश्न ने उन्हें परेशान कर दिया । इतने में किसी ने कह दिया 'रहने दो... उसकी मा...ला पुनीत हुई ।'
मंत्री महोदय को भी यह अच्छा लगा । उसी स्थिति में उन्होंने उस गाय को छावनी में छोड़ दिया । मवेशियों की छावनी का रीति के अनुसार उद्घाटन हुआ ।
मवेशियों की छावनी का उद्घाटन कर मंत्री महोदय एक ओर होते ही अकाल से पीड़ित किसान-खेतिहर मज़दूरों ने अपने मवेशियों को छावनी के गेट की ओर हाँका । हर कोई मवेशियों के नाम दर्ज कर रसीद लेने की और अपने मवेशियों को छावनी में छोड़ने की जल्दबाज़ी कर रहा था ।
लक्ष्मण ने भी अपने बैल छावनी के गेट की ओर हाँके । यह मवेशियों की छावनी न होकर मवेशीख़ाना है और अपने बैलों को मवेशीख़ाने में छोड़ने जैसा उन्होंने कोई गुनाह नहीं किया है, यह उसे रह-रहकर याद आ रहा था । फिर भी छावनी में बैलों को छोड़ने के लिए वह अपना नंबर पहले आए इसके लिए हाथ-पाँव मार रहा था ।
* * * * *