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र्तमान युग सूचना प्रौद्योगिकी का युग है । सूचना विस्फोट इसका बीजमंत्र है। आज सारा संसार सूचनाओं के निरंतर प्रेषण पर टिका है । यह सूचना प्रौद्योगिकी एक विशाल शक्ति के रूप में उभर कर आई है । नए सहस्त्रक में इसका आश्चर्यजनक विकास हुआ है । इसकी परिधि व्यापक, विशाल और विस्तृत हुई है । सूचनाओं के संकलन से लेकर उसके प्रेषण तक की क्रिया में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है। कंप्यूटर, इंटरनेट, ई-मेल, प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, टेलिप्रिंटर, फ़ैक्स, मोबाईल, एस एम एस, एम एम एस आदि साधनों के बलबूते पर सूचना प्रौद्योगिकी ने सशक्त रूप धारण कर लिया है । इसमें सूचनाओं का उत्पादन, विश्लेषण, भंडारण, संचरण नई तकनीक के आधार पर हो रहा है । इसकी विकास प्रक्रिया दिन-प्रतिदिन तीव्रतर हो रही है ।
सूचना विस्फोट के इस युग में हिंदी भाषा नई दिशा की ओर अग्रसर हो रही है। नए अनुसंधान के अनुसार बोलनेवालों की दृष्टि से हिंदी विश्व स्तर पर प्रथम भाषा का दर्जा पा चुकी है। जाननेवालों की संख्या अधिक होने के कारण हिंदी अब संचार, प्रचार-प्रसार की भाषा बन रही है । भारत सरकार के राजभाषा विभाग ने अब सरकारी दफ्तरों में प्रयुक्त होनेवाली हिंदी को बदलने के लिए अवश्य प्रयास तेज कर दिए हैं । "दफ्तरों में इस्तेमाल होने वाले हिंदी कठिन शब्दों की जगह उर्दू, फ़ारसी, सामान्य हिंदी और अँग्रेज़ी के शब्दों का उपयोग करने के निर्देश दिए हैं।" जनसामान्य तक ज्ञान और सूचना पहुँचाने की दृष्टि से हिंदी को सहज, सरल और प्रेषणीय बनाने की ज़ोरदार पहल हो रही है।
कंप्यूटर के कारण आज सूचनाओं का संकलन, विश्लेषण, भंडारण और संप्रेषण आसान हो गया है । हिंदी भाषा का प्रयोग व्यापक रूप में कंप्यूटर पर हो रहा है । टंकण, मुद्रण और कंप्यूटर का नियंत्रण हिंदी में सहज संभव हो रहा है । हिंदी में वर्तनी संशोधक विकसित हुआ है और हो रहा है । इंटरनेट और ई-मेल भेजने और प्राप्त करने की सुविधा हिंदी में उपलब्ध हो गयी है । हिंदी भाषा में आज अनगिनत वेबसाईट उपलब्ध हैं । इन वेबसाईटों पर हिंदी की समस्त विधाएँ , पुस्तकें, पत्रिकाएँ और ब्लॉग प्रस्तुत हैं । फेसबुक में भी अब हिंदी का प्रयोग हो रहा है । वर्तमान समय में हिंदी की ऑनलाईन पुस्तकों का प्रकाशन, विज्ञापन तथा ख़रीद इंटरनेट के माध्यम से हो रही है । इंटरनेट के माध्यम से आज हिंदी भाषा को किसी भी स्थान से सीखा जा सकता है । विश्व के किसी भी कोने में हिंदी की किताबों, पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ा जा सकता है और उनका संपादन, लेखन भी किया जा सकता है । हिंदी अनुवाद की दृष्टि से भी इंटरनेट महत्त्वपूर्ण बन गया है । विविध भाषाओं से हिंदी में तथा अनेक लिपियों को देवनागरी लिपि में परिवर्तित करने की सुविधा इंटरनेट मुहैया कर रहा है। अनेक हिंदी शब्द कोश और विश्वकोश इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। विकीपीडिया के प्रारंभ से तो हिंदी की अकूत सामग्री इंटरनेट पर प्राप्त हो रही है । इससे एक ओर हिंदी का विकास, प्रचार-प्रसार हो रहा है तो दूसरी ओर हिंदी व्यापक रूप में संप्रेषण की भाषा बन रही है ।
सूचना क्रांति के इस दौर में हिंदी भाषा संचार की भाषा बन गई है । जनसंचार के माध्यमों ने हिंदी को व्यापक भूभाग पर फैलाया है । संचार माध्यमों के कारण हिंदी बोलनेवालों की तथा ग्रहण करनेवालों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है । कंप्यूटर, इंटरनेट, ई-मेल, फ़ैक्स, पेजर, उपग्रह इन नव इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में हिंदी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है । टी.वी, फ़िल्म और एफ. एम. रेडियो की भाषा के रूप में हिंदी को पहचान मिल रही है । "हिंदी भाषा का अंतर्राष्ट्रीय रूप बनाने में इन संचार माध्यमों का बहुत बड़ा योगदान है ।"
आज टी.वी. पर लगभग दो सौ चैनल हैं जिनमें अधिकांश हिंदी के हैं । दूरदर्शन तो हिंदी के प्रचार-प्रसार वाला सशक्त माध्यम सिद्ध हुआ है । आज हिंदी की बढ़ती लोकप्रियता के कारण स्मॉलवंडर जैसे विदेशी कार्यक्रम हिंदी में डब हो रहे हैं । समाचार, डिस्कवरी, नेशनल जोगरफी और कार्टून चैनल अपना प्रसारण हिंदी में कर रहे हैं । टी. वी. से प्रसारित होनेवाले हिंदी धारावाहिक विश्व में लोकप्रिय हो रहे हैं । ये विशेष रूप से हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाने में बहुत सफल रहे हैं । इससे हिंदी की शब्द संपदा बढ़ रही है । समाचार, लेखन वार्ता, कथा, साक्षात्कार आदि का महत्त्व बढ़ रहा है । हिंदी की भाषिक व लिखित समृद्धि हो रही है । हिंदी अनुवाद की भाषा बनकर पूरे विश्व को जोड़ रही है । हिंदी भाषा की शैली व प्रस्तुति में परिवर्तन हो रहा है । उद्योगपति अपने बाज़ार की संभावना को देखकर हिंदी को प्रयोग में ला रहे हैं । इससे बहुतों को हिंदी के बलबूते पर रोज़ी रोटी मिल रही है । हिंदी अब रोज़गार की भाषा बन गई है ।
जनसंचार के क्षेत्र में हिंदी नयी ढली हुई करेंसी की तरह आकर्षक और उपयोगी बन गयी है। इसी के चलते इसका प्रचलन बढ़ रहा है । सारे टी.वी. चैनलों को यह बात समझ में आ गई है कि यदि हिंदी का सहारा नहीं लिया तो टिक नहीं पाएँगे । विज्ञापन और समाचार जगत से जुड़े लोगों का मानना यह है कि एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग है जो अपनी बात हिंदी में सुनता-समझता है और चाहता भी है । इस कारण टी. वी. पर हिंदी चल रही है और उसका विस्तार हो रहा है ।
प्रभावी विद्युतीय संचार माध्यम फ़िल्म ने हिंदी की स्थिति को विश्व स्तर पर मज़बूत किया है । फ़िल्म उत्पादन में भारत का पूरे विश्व में दूसरा स्थान रहा है । इन फ़िल्मों में अधिकांश फ़िल्में हिंदी की होती हैं । अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी फ़िल्म उद्योग को 'बॉलिवुड' के नाम से जाना जाता है। बॉलिवुड की 'लगान' जैसी हिंदी फ़िल्में प्रतियोगिता में शामिल होना हिंदी की दृष्टि से सुखद है । 'दो आँखें बारह हाथ', ' शोले', 'अंकुर', 'प्रेम रोग', 'कामसूत्र', 'ख़ूबसूरत', 'चाँदनी', 'ज़ंजीर', 'बॉर्डर', 'तारे जमी पर' आदि हिंदी की अविस्मरणीय फ़िल्में हैं । इन फ़िल्मों ने हिंदी प्रेमी दिए हो या नहीं किंतु इस संचार माध्यम ने भारत वर्ष के साथ ही साथ पूरे विश्व में हिंदी को पहुँचाने का कार्य किया है ।
रेडियो ने अपना पुराना रूप बदल दिया है । एफ. एम. पर बजनेवाले गीत-संगीत से हिंदी का प्रचार प्रसार हो रहा है । हिंदी एफ. एम. के लोग दीवाने हो गए हैं । आकाशवाणी ने तो अपना अलग हिंदी प्रभाग -'समाचार व सूचना संग्रहण' के लिए प्रारंभ कर दिया है । आकाशवाणी से प्रतिदिन इकतीस हिंदी समाचार बुलेटिन प्रसारित किए जाते हैं । जिनमें से छ: तो अंतर्राष्ट्रीय चैनल पर भी प्रसारित होते हैं । आकाशवाणी पर स्थानीय रंगत के साथ ही साथ हिंदी के ज्यादातर कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है ।
हिंदी के प्रति प्रिंट मीडिया भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है । प्रिंट मीडिया ने हिंदी को लिखित रूप दिया है । आज प्रिंट मीडिया का बहुत विस्तार हुआ है । सूचनाओं को लोगों तक पहुँचाने के लिए इसने इंटरनेट को अपनाया है । आज सर्वाधिक समाचार पत्र हिंदी में प्रकाशित हो रहे हैं और इन्हें इंटरनेट पर पढ़ना भी संभव हो गया है । "हिंदी भाषा आज प्रिंट मीडिया में भी अपनी शब्द संपदा बढ़ा रही है । नये शब्दों का निर्माण एवं वाक्य रचनाएँ, कई स्तरों पर भाषा को परिष्कृत व संस्कृत कर रही हैं ।"
सूचना प्रौद्योगिकी के चलते हिंदी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुँच गई है । इंटरनेट के साथ ही साथ वह अब मोबाईल और एस एम एस और एम एम एस की भाषा बन गई है। अपने उत्पादनों को लोगों तक पहुँचाने के लिए हिंदी विज्ञापन की प्रमुख भाषा बन गई है। इससे एक नई व्यावसायिक हिंदी प्रचलित हो रही है । विज्ञापनों के माध्यम से हिंदी घर-घर पहुँच रही है ।
सूचना क्रांति के प्रभाव से अब हिंदी की संरचना पूरी तरह से बदल गयी है । संचार माध्यमों के आधार पर हिंदी के नए-नए रूप बन रहे हैं । माध्यमों के अनुसार हिंदी में परिवर्तन हो रहा है । माध्यमों को प्रभावी रूप में अभिव्यक्त करने के लिए हिंदी ने अनेक कुशलताओं को प्राप्त कर लिया है । किंतु इससे हिंदी का रूप बदल गया है । उसमें कई भाषाओं के शब्दों का प्रयोग हो रहा है । अँग्रेज़ी का प्रयोग तो इतना बढ़ गया है कि हिंदी हिंग्लिश बन रही है । लेकिन हिंदी के विकास के लिए यह आवश्यक भी लग रहा है । क्यों कि अँग्रेज़ी ऑक्सफोर्ड शब्दकोष ने हिंदी के 'किसान', 'बंद', 'मज़दूर', 'धरना', 'गुरु' आदि शब्दों को अपनी डिक्शनरी में शामिल कर लिया है । सूचना प्रौद्योगिकी के युग में हिंदी के विकास हेतु हमें शुद्धतावाद की हठवादी भूमिका को छोड़ना पड़ेगा । "नहीं तो शुद्धतावाद के लिए हठवादी भूमिका लेना हिंदी का गला घोटने के समान होगा।"
हिंदी के सामने लिपि का प्रश्न भी निर्माण हो रहा है । हिंदी की अपनी लिपि देवनागरी है किंतु आज रोमन लिपि का प्रयोग हो रहा है । अर्थात् लोग हिंदी में बोल रहे हैं किंतु देवनागरी के स्थान पर रोमन लिपि का प्रयोग कर रहे हैं । हिंदी की लिपि में यह बदलाव सूचना प्रौद्योगिकी के कारण आया है जो नए अनुसंधान की माँग करता है ।
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि सूचना प्रौद्योगिकी के कारण हिंदी का केवल भारत में ही नहीं तो विश्व में प्रचार-प्रसार हो रहा है । हिंदी अब कंप्यूटर, इंटरनेट, ई-मेल और जनसंचार माध्यमों की भाषा बन गई है । दूरदर्शन और टी.वी. के अनेक चैनल हिंदी को लोगों तक पहुँचा रहे हैं । हिंदी फ़िल्में भी यह भूमिका निभा रही हैं । प्रिंट मीडिया के कारण हिंदी का लिखित रूप अमर बन गया है । हिंदी भाषा अब अंतर्राष्ट्रीयता की ओर चल पड़ी है । वह अब रोज़गार और संचार की भाषा बन गई है । विज्ञान, चिकित्सा, व्यवस्थापन का ज्ञान अब हिंदी में आ चुका है । किंतु हिंदी के रूप में परिवर्तन हो रहा है । उसकी लिपि बदल रही है । 'टाइम्स न्यू रोमन' की तरह हिंदी में कोई वैश्विक फाँट तैयार नहीं हो रहा है । टंकण की दिक्कत के कारण लोग हिंदी के लिए रोमन लिपि का प्रयोग कर रहे हैं । सूचना प्रौद्योगिकी से एक ओर हिंदी का विस्तार हुआ है तो दूसरी ओर उसका रूप परिवर्तित हो रहा है । किंतु हिंदी को राष्ट्रभाषा, विश्व भाषा और राष्ट्रसंघ की भाषा बनाने की दृष्टि से सूचना प्रौद्योगिकी का यह कार्य अनूठा है, इसमें कोई शक नहीं ।
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